Wednesday 2 September 2015

फ्लोटिंग वोटर ; निर्णायक मंडल

हर एक पार्टी के अपने आधार वोट है , जो कभी टस से मस नहीं होते है। इस तरह के वोटर पार्टी विज़न और सिद्धांतो को अपनाते है, इनमे अधिंकाश जाति या समुदाय विशेष का ताल्लुक रखते है। इस तरह के वोटर के लिए पार्टी हमेशा ज्यादा आक्रामक रुख अपनाती है, क्योकि  अगर ये वोटर ज्यादा इधेर -उधेर हो गए तो हार  और जीत की तय कर देते है। 
                              इसी प्रकार हर चुनाव में ऐसा होता है की मतदाताओ का एक छोटा समूह, जो मुस्किल से तीन से पांच प्रतिशत होता है , जो दुविधा में होता है , उसे चुनावी संघर्श में प्रमुख राजनीतिक पार्टियो में से कोई आकर्षित नहीं कर पता है , ऐसे वोटर को चुनावी शब्दावली में फ्लोटिंग वोटर (अस्थिर मत ) कहा जाता है। इस तरह के वोटर के संख्या भले ही कम हो , परन्तु ये चुनावी संघर्श को बहुत ही मजेदार बना देते है। इस तरह के वोटर का चुनावी संघर्श में महत्व बहुत  बढ़ जाता है , ये वोटर कभी भी अपने पत्ते नहीं खोलते है और खासकर विधानसभा चुनाव में इस तरह के मतदाता को राजनीतिक प्रत्याशी ज्यादा महत्व देते है। 
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                     बिहार विधान सभा के चुनाव में भी कुछ इसी तरह का हाल है , जहा 5 से 7 % वोटर हर विधान सभा में कोई भी गठबंधन के एजेंडा को स्वीकार करने के पक्ष में नहीं है।  इस तरह के वोटर जो लालू प्रसाद को पसंद नहीं करते है उसके एजेंडा को हमेशा से नकारते रहे है। नितीश कुमार के विज़न से सहमत नहीं है, और साथ ही जिस तरह से केंद्र सरकार काम कर रही है , उस से भी वो अपने आप को छला हुआ महसूस कर रहे है। इस फ्लोटिंग मतदाता में किसान , मजदुर , दलित के चिंता करने वाले लोग है। इस तरह के मतदाता में लोकतान्त्रिक मूल्यों , धर्मनिरपेक्ष और  अपने आप को किसी भी सरकार से ठगा हुआ महसूस करने वाले लोग है। इस तरह के मतदाता सभी राजनीतिक पार्टी के चुनावी घोषणापत्र में आधारित मूल्यों की तह में जाने के लिया बेताब रहते है। ऐसी प्रकार के मतदाता में वो लोग भी है जो अराजनीतिक प्रवृति के है। कुछ इस तरह के मतदाता चुनाव के समय क्षणिक लाभ के लिया अपने वोट को बेचने वाले भी लोग है, जिसे राजनीतिक पार्टी मतदान तक कुछ खास ख्याल रखती है। अराजनीतिक प्रवृति वाले मतदाता को मतदान तक पहुचने का काम चुनाव आयोग एवं कई सरकारी संगठन करती है , इस से कुछ वोटर टूट कर किसे को भी वोट कर देते है। 
                                 फ्लोटिंग वोटरो को वही दल या गठबंधन अपनी तरफ खीच पायेंगे जो इस विशेष वर्ग  सवालो को बेहतर तरीको से अमल करेगा , उसका जबाब देगा , उसकी समस्याओ का समाधान करने की कोशिस करेगा। इस तरह के वोटर की महागठवन्धन से शिकायत यह है की वर्त्तमान समय में गिरती कानून व्यवस्था ,कुछ समय से फिर से राज्य में आपराधिक प्रवृति में वृद्धि हुई है। इनका महागठवन्धन से शिकायत है की  राज्य की शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है। मुख्यमंत्री के नाम से चलने वाली योजनाओं की हालत पतली है। किसानो के लिय योजनाएॅ तो बहुत से बनती है , लकिन किसान तबके तक इसका लाभ नहीं पहुंच पता है। अफसरशाही का बोलबाला है , अफसर आम आदमी की बातो को नहीं सुनते है और उसकी समस्याओ का निराकरण करते है। कुछ टोला सेवको को छोड़कर आज भी व्यापक दलित समाज अपनी आर्थिक एवं राजनीतिक हैसियत के लिए तरस रहे है , वो आज भी सूअर , बकरियो और भैसो में उलझा हुआ पते है। ऐसे लोग सरकार से अपने आप को दूर महसूस  करते  है, क्योकि सरकार अभी तक इनके बड़े हिस्सों की सामाजिक जीवन में बदलाव नहीं ला सकी है। 2008 में कोसी में आई भयंकर बाढ़ के बाद नवनिर्माण में सरकार  खास उन्नति हासिल नहीं कर पाई , कई निर्वाण कार्य आधे -अधूरे  किये गए। बाढ़ -पीड़ित लोग अभी भी अपने दुःख को भूल नहीं पाये है। बड़ी सख्या में युवा जो हाई स्कूल और महाविद्यालय की पढाई पढ़ कर अपने आप को बेकार महसूस कर रहे है ,क्योकि उन्हें रोजगार नहीं मिल रही है 
                                           कुछ ऐसी तरह एनडीए से इनकी शिकायत है की इनके सरकार में शामिल लोग धमर्निर्पेक्ष मूल्यों कमजोर करने की कोशिस करते है , हर समय धमर्विशेष के खिलाफ आवाज उठाते रहते है , लोकतान्त्रिक मूल्यों को कमजोर करने  की कोशिश करते है, किसानो की भूमि को हड़पने लिए नयी भूमि अधिग्रहण बिल को पास करने की कोशिश में है, दलित वर्ग लोगो की शिकायत है की ये सरकारी नौकरी में आरक्षण खत्म करने की कोशिस में है। 
                हर एक दल  फ्लोटिंग वोटो को अपनी तरफ करने के लिया हर एक पैतरा आजमाने को तैयार है , जहा एक तरफ नितीश कुमार युवाओ को आने तरफ आकर्षित करने के लिया अपने विज़न में युवाओ के लिया कई कार्यकर्मो की घोषणा  की है, उसी प्रकार एनडीए ने भूमि अधिग्रहण बिल वापस लेने का फैसला करके जहा किसानो  फ्लोटिंग वोटर को अपने तरफ करने के कोशिश के है। इस फ्लोटिंग वोटर को अपने तरफ करने के लिय हर एक दल अपने घोषणा पत्र एव प्रचार में विशेष ख्याल रखने वाली है, क्योकि बिहार जैसे राज्य में अधिकांश विधानसभा में जीत -हार  बहुत ही कम होता है, और फ्लोटिंग वोटर इसे निर्णायक बना देता है। फ्लोटिंग वोट र्का निर्णय इस बात पर निर्भय करेगा कौन सा दल इनके सवालो का कैसा जबाब देता है,  वह दल ऐसे वोटरो को ज्यादा अपनी तरफ आकर्षित कर पायेगा ,जो विपक्षी  हमलो  तर्कपूर्ण जबाब देगा और खुद के प्रति वोटरो की आशंकाओं को दूर करेगा। 
                                चुनाव आयोग द्वारा मतदाताओ को एक अधिकार दिया गया है नोटा का, नोटा का मतलब नॉन ऑफ़ द एबव, मतलब इनमे से कोई नहीं है। जैसे बहुविकल्पीय प्रश्न में विकल्प में एक विकल्प इन में से कोई नहीं होता है वैसे ही चुनाव में चुनाव आयोग दुर नोटा भी एक विकल्प गया है। अगर किसी मतदाता को कोई भी प्रत्याशी आपने लायक नहीं लगता है तो वो नोटा को चुन सकते है. इससे वोट का प्रतिशत  तो बढ़  जाता है, परन्तु प्रत्याशी के धरकन को बढ़ा देता है, नोटा बटन को दबाने वाले अधिकांश फ्लोटिंग वोटर होते है। .  

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