Tuesday 1 September 2015

बिहार ; परिवारसभा चुनाव 2015

अगर आपको राजनीतिक परिवारवाद देखना है , तो बिहार विधानसभा चुनाव'इसका एक उदाहरण है। बिहार विधानसभा के चुनाव में जिस तरह से हर एक राजनीतिकपार्टी अपने सगे समन्धी को विधानसभा  चुनाव जीतने के लिए हर तिरकम आजमा रही है, इससे तो लगता है के यह चुनाव जनता जनता की उम्मीदों को कम, अपने पारिवारिक उम्मीदों को पूरा करने के लिया लड़ा जा रहा है। 



         विहार विधानसभा  चुनाव में जितने भी छेत्रीय पार्टी है ,उसमे से अधिकांश पार्टी को पारिवारिक पार्टी कह सकते है। जैसे की लोक जनशक्ति पार्टी , राष्ट्रीय जनता दल  , … इत्यादी  इन सभी पार्टी के सुप्रीमो वंशानुगत है। लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राम विलास पासवान एवं प्रदेश अध्यक्ष पसुपति कुमार पारस , जो आपस में सगे भाई है।इनके एक और भाई राम चन्द्र पासवान जो  लोक सभा  के सांसद है। और राम विलास जी के बेटे भी सांसद है। इस  विधान सभा के चुनाव में इन के एक भाई पसुपति कुमार पारस  , भतीजा प्रिंस पासवान  और भी सगे सबंधी को चुनाव मैदान में उतरने के लिया तैयार है। इस तरह है कुल 15 विधान सभा सीटो पर अपने सगे सम्बन्धी को टिकट दिया जायेगा। यानि के कुल पार्टी द्वारा अधिकृत्य उम्मीदवारों का कुल 25 % टिकट  अपने सगे समन्धी को। 
                     इसी प्रकार राष्ट्रीय जनता दल, जिसके राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव है। जो खुद न्यायपालिका द्वारा चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित किया जा चूका है। लकिन इस विधान सभा के चुनाव में अपने दोनों बेटो , बेटियो और दामादों को चुनाव लड़ने के घोषणा किया जा चूका है। इस चुनाव में कुल 5 से 10 सीटो  पर अपने सगे सबंधी को टिकट दिया जायेगा। लालू जी बहुत  बार बोल चुके है, चुनाव में टिकट सगे -सबंधी को नहीं तो किसी और को देंगे!!! कुछ ऐसा ही हाल भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड का है, जो अपने आप को कार्र्यकर्ता आधारित पार्टी कहती है , लेकिन वास्तविक में इसके अधिकांश विधायक या सांसद अपने सगे -सबंधी को चुनाव लड़ाने के लिया किसे भी हद तक जाने तक तैयार  सकते है। इसके जितने भी उदाहरण दिए जय कम ही है। 
                                             आजकल राजनीतिक पार्टी का गठन करने जैसे अपने पारिवारिक कंपनी खोलने जैसा हो गया है।किसी भी भी राजनीतिक पार्टी के उदेश्यो ,सिद्धांतो को जनता तक पहुँचाने का काम कार्यकर्त्ता करते है। वो आम आम आदमी से मिलते है राजनीतिक पार्टी के बारे में आम जनता को जानकारी मुहैया करते है, पार्टी फंड  लिया पैसा चन्दा के रूप में लोगो से मागते है। और उस पैसे से राजनीतिक पार्टी अपने आधार को मजबूत करती है ,  दिन -रात मेहनत कर के पार्टी का आधार मजबूत करती है, कार्यकर्ता अपने पारिवारिक जीवन को  भूल कर राजनीतिक पार्टी के लिया आप को न्यौछावर कर देता है। पार्टी के कार्यकर्मो में  कन्धा  कन्धा मिला कर चलते है।  लेकिन जब विधानसभा या लोकसभा टिकट की बात आती है तो सबसे ज्यादा उपेक्षित कार्यकर्ता ही महसूस करते है, क्योकि अधिकांश टिकट राजनीतिक पार्टी के सुप्रीमो अपने सगे सबंधी को देता है  या फिर ऊँची बोली लगाने वाले पूंजीपतियों को बेच देते है। लकिन यह सब भूल कर भी कार्यकर्ता उस उम्मीदवार को जीतने के लिए सब कुछ करते है। लेकिन उम्मेदवार जीतने  के बाद वो V.I.P बन जाते है और उस को कार्यकर्ता से मिलने के लिए समय नहीं मिलता है। फिर चुनाव आता है और ऐसी ही चलता रहता है. और कार्यकर्ता अपने आप को अपमानित महसूस करता है। 
                                                       आज कल का चुनाव राजनीतिक नहीं पारिवारिक हो गया है , या तो या परिवार को चुनो या दूसरे परिवार को , इस लिया आज कल चुनाव राजनीतिक नहीं पारिवारिक हो गया है. और उसे के अनुसार सरकार चलती है।  
                      

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