Saturday, 26 September 2015

बिहार चुनाव :एक मतदाता का दर्द


मै बिहार का निवासी हू। भारतीय संबिधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकार "मतदान का अधिकार " के तहत उम्रसीमा  को पार कर चूका हु जिसके कारण मै एक आम मतदाता भी हु इसलिए बिहार में होने वाली विधानसभा चुनाव की उत्सुकता हमारे दिलो दिमाग में हिचकोले खा रही है , मै  अपने मतों  के दुर विहार में अगले महीने बनने वाली नई सरकार के भविष्य को लेकर सचेत है। 

   मै नितीश कुमार का बहुत बड़ा  प्रशंसक था ,जब दूसरी बार नितीश कुमार ने 2005 में मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण किया था तो मै भी उनलोगो में शामिल था जो बिहार की बदहाली पर नए बिहार के उज्जवल भविष्य को देख रहे थे। उस समय मै राजनीति को इतनी गहराई से भले ही नहीं जानता था ,परन्तु बिहार में हो रहे अपराध और भ्रष्ट्राचार को जरूर जानता था। उस समय बिहार में हो रहे अपहरण, हत्या ,डकैती जैसी अपराधिक कृत्यों से आम बिहारवासी डरे -सहमे से थे ,अन्य माता -पिता की तरह मेरे  माता -पिता भी अकेले कही नहीं जाने देते और शाम होते ही घर में अपने साये के पीछे छुपा लेते  थे, परन्तु जब नितीश कुमार भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से मुख्यमंत्री निर्वाचित हुआ तो हर पीड़ित परिवार अपने आप को सुरक्षित मानने लगा। नितीश कुमार के मुख्यमंत्रीत्व काल में इस मामले में बहुत ही ज्यादा प्रगति हुई।  नितीश कुमार के शासन से पहले बिहार में अपहरण व्यवसाय था जिसमे किसी का भी अपहरण करके पैसा निचोड़ा जाता था ,प्रकाश झा की फिल्म "अपहरण "में इसको सटीक दिखाया गया है। विश्व में बिहार की गणना एक अपराधिक पृष्टभूमि वाले "कानून पर किसी का जोर नहीं" वाले राष्ट्र से तुलना करते थे ,जहा किसी दूसरे राज्य के लोग आना नहीं चाहते थे। नितीश कुमार की पहली प्राथमिकता कानून -व्यवस्था कायम करना था और इसमें सफल भी हुए जिससे बिहार क बिकास की नई गाथा लिखनी सुरु हुई इन्होने बहुत सारे मोर्चे पर सफलता पाई नितीश कुमार का साथ कदम से कदम मिलाकर बीजेपी ने दिया जिससे बिहार भारत के तेजी से विकासशील राज्यों के क्रमों में अग्रिम पंक्ति में खड़ा हो गया। 
                        नितीश की सरकार ने बहुत सरे अच्छे काम किए और  सारे बुरे फैसले लिए। जिसके परिणाम कुछ दिनों बाद दिखने लगे जैसे की शिक्षा व्यवस्था , वतर्मान में बिहार में शिक्षा का हाल बहुत ही ख़राब है। इसका कारण शिक्षको की अनियमित भर्ती -प्रक्रिया है , जिससे भले ही बेरोजगार युवको को रोजगार मिल गई ,परन्तु इससे वे व्यक्ति भी शिक्षक बन गए जिसको कोई मूल ज्ञान नहीं है ,वे पैसो के बदौलत शिक्षक बन गए लेकिन इनको न तो पढ़ाई का तरीका मालूम है और न ही बेसिक ज्ञान जिससे विद्याथी को  सामाजिक ज्ञान की जानकारी दे सके. जिसके कारण आजकल छात्रों को सामाजिक , गणित और विज्ञानं का कुछ भी ज्ञान नहीं है ,जिसके कारण वे आगे चलकर रोजगार प्रदक शिक्षा हासिल नहीं कर पाते है। बोर्ड की परीक्षाओं को पास करने के  लिए अनैतिक ढंग से सहारा लेते है, जिससे शिक्षा-व्यवस्था का स्तर गिरता जा  है। हाल के समय में बोर्ड परीक्षाओ में जिस तरह के छात्रों से कदाचार की तस्वीरें समाचार पत्रो और चैनलों में दिखाया गया उससे बिहार के शिक्षा -व्यवस्था पर सवाल उठने लगे, इसकी भले ही सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़े लेकिन बिहार के लोगों से सवाल पूछने लगते है की , उसकी अर्जित डिग्रियों पर सवाल उठाने लगते है। 
                                                     नितीश कुमार बीजेपी के साथ गठबंधन की सरकार आठ बर्षो तक कुशलता पूर्वक चलाई परन्तु हठवश  उसने गठवन्धन तोड़कर उसी सरकार  साथ गठवन्धन कर लिया जिसके खिलाफ उठे जनाक्रोश के परिणामस्वरूप सरकार बनाई थी। नितीश जी ने अपनी सरकार को बचाने के लिए लालू प्रसाद की दल के साथ गठवन्धन कर लिया जिसका परिणाम कुछ दिनों बाद दिखने लगा। आज फिर से कानून व्यवस्था का स्तर गिरने लगा ,अपराध में वृद्धि हो गयी है। 
                                        वर्तमान समय में सभी राजनीतिक दलों आम मतदाता के मूल समस्याओ जैसे मँहगाई , बेरोजगारी ,शिक्षा , व्यवस्था का पतन , भ्रष्टाचार इत्यादि को बाहर कर दिया है , कोई भी दल मूल मुद्दो पर बात करना ही नहीं चाहता है। राजनीतिक दल इस पे बात कर रहे है की ये अमुक पार्टी सांप्रदायिक पार्टी है , ये पार्टी जंगल राज चलाती है , ये पिछड़ों की पार्टी है , वो अगड़ी जाति की पार्टी है , राज्य में व्याप्त मूल समस्याओं पर बात करना ही नहीं चाहती है वो हमें अपनी जाति और धर्म के नाम पर राजनीतिक दलों करने को प्रेरित कर रही है। 
     आज बिहार में गिरती कानून व्यवस्था , शिक्षा -व्यस्था का पतन इन सभी मुद्दो पर बात कोई नहीं कर रहा है , करे भी तो कौन करे। बिहार में पिछले आठ वषो से सरकार में शामिल बीजेपी विपक्ष में आ गई है और अपने द्वारा नहीं किये गए कार्यो की आलोचना कैसे कर सकती है ? वहीं विपक्ष में बैठा राजद 10 साल से सरकार चलने वाली जदयू की हा में हा मिलाने लगा। जिसके कारण कोई भी पार्टी सरकार द्वारा नहीं किए गए कार्यो की आलोचना कैसे करेगा। ऐसे परस्थिति में सबसे बड़ा नुकसान तो जनता का हो रहा है 
     जनता से अपने आप को जुड़ा होने का दावा करने वाली लेफ्ट पार्टियाँ कहाँ है ,ढूढ़ने से भी दिखाई नहीं दे रही है ,कुछ राजनीतिक दल जैसे -सपा ,बसपा , शिवसेना    …चुनावी बारिश रूपी मौसम में रंग बिरंगी छतरी लेकर मत चुनने में लग जाती है और चुनावी बारिस खत्म होते ही गायब हो जाती है इन सभी पार्टियो को चुनावी मौसम में ही मतदाता के आंसू दिखते है , और चुनाव बीतते ही अदृश्य हो जाते है। 
                       जिससे की मतदाता के पास विकल्प बहुत कम हो जाते है जो उनकी आवाज बने। 
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